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घर के सामान

सुरज के सो जाने के बाद , जब घर वापस जाता हु
तो होता है अहसास कुछ बिखरे , कुछ खोए सामानो का
वो सामान जिसे बडे  प्यार से सजाया था मैने
कुछ छोटे बडे गुल्दस्ते , जीसमे से हमेशा खूशबू आती थी
कुछ इस तरह बिखरे पडे  है सामान
कि अब कांटे अलग और फूल अलग है गुल्दस्ते से
वो खत जिसे कई कई  बार पढ़ा है मैने , लिफाफे से गायब है
डायरी के बीच मे परा ये खाली लिफाफा , बहुत याद दिलाता है उस खत की
वो आवाज भी अब कभी महसुस नही होती
जो हमेशा खिलखिलाती रहती थी, मेरे घर के अन्दर ख्यालो मे
ना जाने कहाँ खो गई है वो आवाज
एक छोटा सा बैग था मेरे पास
जिसमे सहेज कर  रखे थे मैने सारे किमती सामान
बस कुछ निशानियाँ ही बच गए है उसमे
एक भी समान किमती नही दिखता
कुछ तारिखे हूवा करती थी, बहुत खास तारीखे
दीवार मे लगे कैलेन्डर से वो भी गायब रहते है अब
हा, कभी कभी दिख जाते है,लेकिन बहुत खोजने पर
सूरज के सो जाने पर , जब घर वापस जाता हू
खोजना चाहता हु , सारे खोए सामान
सजाना चाहता हु घर अपना
पर अन्धेरे मे करु भी तो कैसे
शायद घर बिख्ररा ही रहेगा अब
शायद कोइ समान नही मिलने वाला है मुझको
जो खो गया है शायद वो मेरा था ही नही.…… 

"My First Story"

My First Story, don’t know what to write how to write. I am very afraid about my first story, perhaps it’s not going to find any end :)



विस्की के ग्लास में धीरे धीरे पिघलता हुआ बर्फ और हाथ में जलता हुआ सिगरेट , ना जाने किसकी सोच में गूम था की वो भूल गया था सिगरेट का कस लेना । सामने के टीवी स्क्रीन पे कभी आईपीएल तो कभी पॉलिटिक्स के न्यूज़ बार बार बदल रहे थे पर इन सब से बेखबर वो किसी और दुनिया में गूम था । ग्लास में पिघलता हुआ बर्फ भी अपना दम तोर चूका था , सिगरेट  के दुसरे किनारे पे जलता हुआ आग जब उसके उंगुलियों को छुया तब वापस आ गया अपनी दुनिया में . सामने के  फ्रीज से 2-4  आइस क्यूब अपने ग्लास में  मिला के, वो दूसरा सिगरेट  जलाने लगा . उसे समझ में नहीं आ रहा था की उसने जो किया वो सही था या गलत. इसी सवाल का जबाब ढूंढते ढूंढते वो 4-5 पेग पि चूका था . शायद अल्कोहल का असर होगा की उसे इतना टाइम लग रहा था खुद के फैसले को जज करने मे. 2 पेग और लगाने के बाद उसने दूसरा सिगरेट जलाया आर वापस चला गया अपनी दुनिया में जहा उसे ये जानना था की उसने जो भी किया वो सही था या गलत .
कभी कभी हम जिंदगी से बहुत उम्मीद कर लेते है , और सारी  उम्मीदें ना पूरी होने पर इतने निराश  हो जाते है की लगता है कुछ पाया ही ना हो. सब कुछ तो था उसके पास , एक हँसता हुआ परिवार माँ पापा बहन भाई  और वो जिसे वो खुद से ज्यादा प्यार करता है उसका प्यार पूजा . शायद किसी ने सच ही कहा है शराब पिने से गम भुलाया नहीं जाता बल्कि और बढ़ जाता है दर्द , जो सवाल हम ज़माने से करना चाहते है खुद से करने लगते है. उसे खुद की मनोदशा समझ में नहीं आ रही है  .ऐसा लग रहा है जैसे वक़्त पीछे ले जा रहा है ऐसा लग रहा है जैसे वो वापस बचपन में लौट गया है , या शायद उसने ज्यादा पि ली है. उसे लग रहा है कोई उसे बुला रहा है, शायद माँ बुला रही है…. निशित उठो ....निशीईईइत ....बेटा स्कूल नहीं जाना है ,उठों .......

भारत देखो अब रो रही है

भारत अपने बेटों को ममता की दुहाई दे रही है
मेरे वीरों अब जग जाओ , इंसानियत यहाँ पे खो रही है
नहीं बचा यहाँ कोई सुभाष , बचा न कोई गाँधी है
कौन संभालेगा मेरा आँचल
हर मोड़ पे धूलों से भरी यहाँ आंधी है
हर तरफ शकुनि घूम रहे है
धृत-राष्ट्र  ने आँखों पे पट्टी लगाई है
कृष्णा भी नहीं है अब बोलने वाले
इज्ज़त दांव पे अब बन आई है
भगवान् का भी नहीं है डर  उसको
उसने बच्ची की निर बहाई है
हे शिवाजी तुम उठा लो हथियार
या गाँधी तुम ही आ जाओ  
कुछ भी हो तरीका चाहे ,
मेरी लाज बचा जाओ
भारत देखो अब रो रही है
कहा गए सब यहाँ के वीर ????

Solitary Night

Amongst the sadness and stillness of the night
He stood there watching the white moonlight
With an imagination of being questioned "why are you staring at me"
Just an imagination perhaps
He was searching in his own strange ways, for her, in the moon
Was the answer he answered to himself?
Was cloudy that night, the motion of the clouds often disturbing him
Swaying him away from his aim, till he was determined
He spent that night staring and seldom complaining to the clouds
Wishing both of them to be left alone
It seemed to be now a favourite past time for him, with each night getting darker
The clouds reducing (which he considers a good sign) and the moon getting brighter
As if both of them communicating better than the night before
A night came when the moon was full,
With twinkling stars filling up the night sky
And no clouds that night..
It seems he is happier at least the sky is wishing the same
He met her tonight
There were so many nights he couldn't sleep, because of those dark nights,
But tonight was so better, happier than ever before,
As if he was so very near to his aim, 'To Her',
He just could not rest his eyes.
They met again the next evening,
It was a very different day with rain drops splashing against their faces,
Dark grey clouds all over the sky
Both of them dreaming into each other’s eyes,
Lost amongst themselves, wishing that the evening never comes to an end,
Everything including 'Her' remains the same.....

एक शून्य में खोया हुआ

एक शून्य में खोया हुआ अनजाना सा मैं
जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हूँ
की कही मील जाये शायद वो 
की जिसने सिखाया था प्यार करना मुझे
की जो मेरे ही रूह में बस गयी थी कभी
की जिसको देखने की लालच में
आँखों ने सोना छोर दिया था
एक शून्य में खोया हुआ अनजाना सा मैं
जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हूँ
की कही मील जाये शायद वो
की जीसके एक आंशु के टपकने पे
पुरे दुनिया को जलाने  का दिल करता था
की जिसके एक मुस्कुराने पे
जिस्म की थकान दूर हो जाया करती थी
की जिसके साथ नहीं होने पर भी
उसके यादों की महक बिखरती रहती थी
एक शून्य में खोया हुआ अनजाना सा मैं
जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हूँ
की कही मील जाये शायद वो
की जो मेरे बुलाने पर भी
अब मेरे पास नहीं आती
की जो अब समझ नहीं पाती
मेरे जुबान की बातें
की जिसने मेरी ख़ामोशी सुन के
मुझसे प्यार किया था कभी
एक शून्य में खोया हुआ अनजाना सा मैं
जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हूँ
की कही मील जाये शायद वो



एक चौराहे की कहानी

उस चेहरे को देख कुछ यूँ लगा
कोई लम्हा याद आया हो जैसे
हाथों में कुछ खिलौने , बदन पे अध् फटे से कपडे
चेहरा जैसे धुप को ललकार रही थी
और आँखे गाड़ी के भीतर बैठे मेम साहब को देख रहे थे
होठ सूखे हुए पर दिल में एक उम्मीद
कोई खिलौना अगर बीक जाता तो पेट की आग को बुझा लेती

बड़ी करुणा भरी थी उसकी आँखे
पर आँखों से क्या होता है
उसके ऊपर माथे की लकीरों को कौन बदल पाया है
उसके हर नजर में एक प्यास थी
और उस चौराहे के लोगों की नजरों में भी कोई प्यास था

समय के साथ बढ़ता बदन , और छोटे होते हुए कपडे
चाह के भी खुद को नहीं छुपा पा  रही थी वो
और हमारे समाज के ताज कहलाने वाले अपनी किस्मत पे इठला रहे थे
सबकी नजरों के घाव को झेल रही थी वो
और दिल जैसे सोच रहा था , की किसको दोश दे
उस खुदा को जिसने ऐसा किस्मत लिखा
या उस कलम को जिससे खुदा ने उसका किस्मत लिखा था कभी

बरी  मुश्कील  से नजरो को छुपा रही थी वो
बरी मुश्कील  से दामन बचा रही थी वो
नहीं चाहती थी की खड़ी रहे उस मोड़ पे मगर
मजबूरीयों का सीतम उठा रही थी वो

चाह के भी तब दे न पाया था एक सिक्का मैंने
पेट थे मेरे भरे , और उसको रखा तब भूखा मैंने
दुनिया को शायद पहली बार मैंने समझा था उस दिन
पैसे की कीमत को पहली बार था पहचाना मैंने

गाड़ियों के भीर में वो आज भी कही खड़ी होगी
लोगों की नजरे उसपे आज भी कही गडी होंगी
आज भी कही धुप में वो , पसीने सुख रही होगी
आज भी किसी मोड़ पे वो अपना दामन बचा रही होगी

आज भी उसको देख के कोई दिल रोया होगा
आज भी उसको देख के कोई रात भर ना सोया होगा .......

जिंदगी और मैकदा

क्यूँ तरपता है कोई किसी के लिए
क्यूँ मचलता है कोई किसी के लिए
जिंदगी देती है धोखा बेखुदी के लिए
मैकदा करता है स्वागत जिंदगी के लिए
               मैकदे में अब हम भी जाने लगे हैं 
               अपने हाथों में जाम अब सजाने लगे हैं 
               शाकी की नजर भी अब देखने लगी हैं हमें  
               जाम होंठो से अब हम लगाने लगे है 
कोई जाता है मैकदे दिल जलाने के लिए 
कोई जाता है मैकदे जले दिल को बुझाने के लिए 
शाकी ने कहा पिने वाले सुनो 
क्या आते हो तुम दिल लगाने के लिए  
               सुना है यहाँ ना कोई तन्हाई है 
               होती यहाँ ना किसी की रुसवाई है 
               लोग जीते है यहाँ पर जिंदगी के लिए 
               लोग पीते हैं यहाँ पर ख़ुशी के लिए 
निगाहों में देखोगी तुम शाकी अगर
नजर आएगी इसमें कहानी मेरी
क्यूँ आया हूँ मैं मैकदे में यहाँ
जान जावोगी सारी कहानी अभी
               इतनी पिला दे नजर से की नजर ढल जाये मेरी
               इतनी पिला दे की होश न आये कभी
               इतनी पिला दे की लोग शराबी कहने लगे
               इतनी पिला दे की पैमाने छोटे लगने लगे
एक आएगा वक़्त सब बदल जायेगा
जाम होंठो पर आकर तब ढल जायेगा
तेरी नजर भी तब धोखा देंगी मुझे
मेरे चेहरे का रंगत बदल जायेगा
               कोई कहेगा की ये दीवाना चला
               कोई कहेगा की ये पिने वाला चला  
               सारी दुनिया करेगी तब शिकायत मेरी
               तेरे होंठों पे भी नाम मेरा आएगा
अपने पलकों पे आँशु ना लाना कभी
ये कहानी किसी को ना सुनाना कभी
सुन के कहानी ये मैकदा रोने लगेगा
दुनिया को फरेबी कहेंगे सभी
               दुनिया से पाकर धोखा थके मुसाफीर कहा जायेंगे
               मैकदा है जन्नत सब लौट यहीं आयेंगे
               मैकदा है जन्नत सब लौट यहीं आयेंगे
               मैकदा है जन्नत सब लौट यहीं आयेंगे.......

Collegae Ka Jamana



Bahut yaad aata hai wo college ka jamana
Wo groups ke chote fights, wo ek dusre ka samjhana
Wo street lyt ki roshni me,raat bhar yun hi bhatakte jana
Wo ek dusre k gam ko bhulana
Bahut yaad aaata hai wo clg ka jamana
Subah k 4baje dosto k sath wo stn pe chai pine jana
Aur chai k paise ka chanda jugadna
Wo doston ka tfn khana
Wo phnx room me baith k tym gujarna
Kisi ek k liye pure grp ka sath me chai pine jana
Kisi ek ki baton ka yun majak urana
Wo xam k tym aur raat k 12 baje mob ka recharge karwana
Wo orkut,gtalk aur fb k chats,wo bin matlab k colg jana
Wo bahut si batain aur mob ka bal khatm ho jana
Wo chat karne ka tym aur net ka DC ho jana
Wo xams k xtra classes doston se lena
Wo ek raat ki padhai, aur xam dene k baad ka khana
Kisi ek ka tabiyat kharab hone pe roommates ka khyal Rakhna
Ghar walon k aane se pahle pure ghar ka saaf karna
Group k ladki logo k discussion se dimaag ka garam hona
Wo birthday ka surprise plan karna
Aur fir kisi ek ki galti se pure plan ka fusssss ho jana
Bahut yaad aata hai wo college ka jamana
Aaj bhi us college me aisa sab hota hoga
Ham jaisa group kahi aaj bhi ye sab karta hoga…..


परीचय

मेरे घर के अन्दर जो रहता है आईने में
उसने मेरा परीचय पूछा
हो कौन तुम , कहा को जाओगे
कहाँ तुम्हारी मंजिल है ?
क्या कभी लौट के फिर तुम आवोगे ?
सुबह का बुझता दीया बोलू उसे
या बोलू मुठी से फिसलता रेत
है बहुत ही मुशकिल देना उसे अपना परीचय
जो मेरे घर के अन्दर आईने में , हँसता हुआ मुझ जैसा कोई रहता है
नहीं देखा है मैंने उसका चेहरा कभी
गम से लदे , आंसू से छुपे हुए
न जाने कैसे खुश रहता है वो
सोचता हूँ पूछ लू पहले उसका परीचय
जो मेरे घर के अन्दर आईने में बैठा , मुझपे तानें मारता रहता है
क्या हैं मेरी मंजिल , मुझे खुद नहीं पता है शायद
सागर बन ने की तमन्ना तो थी
कही नदी बनकर सागर में न सीमट जाना परे
शायद उसे पता हो मंजिल मेरी
जो मेरे घर के अन्दर आईने में बैठा है , जिसकी कोई भी मंजिल नहीं
मंजिल तो पता चल गयी
रास्तों को ढूँढना बाकि है
शायद हो मुस्किल ये सफ़र क्योंकी नहीं है वो साथ मेरे
जो मेरे घर के अन्दर आईने में हँसता हुआ मुझ जैसा रहता है
तो क्या हुआ की मिले रोरे , पत्थर और मुश्कीलाते रास्तों में
लो मंजिल को मैंने पा लिया है अब
जल्दी जल्दी लौटना है घर को
कर रहा होगा वो मेरा इंतज़ार
जो मेरे घर के अन्दर आईने में मुझ जैसा कोई रहता है
लम्हों में और बरसो में तो होता है यूँ फर्क बहुत
बरसो की दूरी कभी लम्हों सी हो जाती है
लम्हों की बात भी जैसे बरसो सी हो जाती है
लम्हों की बात लग रही है, जब मिलूँगा मैं उस से
जो मेरे घर के अन्दर आईने में मुझ जैसा कोई रहता था
कोई और दिखा घर के आईने में मुझे
जहा मुझ जैसा कोई पर हँसता हुआ रहता था
मैंने पुछा उस से

हो कौन तुम , कहा को जाओगे
कहाँ तुम्हारी मंजिल है ?
क्या कभी लौट के फिर तुम आवोगे ?
वो उदास सा चेहरा जिसे मैंन नहीं जानता बोल यूँ ही

सुबह का बुझता दीया समझो  मुझे
या समझो  मुठी से फिसलता रेत
है बहुत ही मुशकिल देना मुझे  मेरा  परीचय।।।।।।।




वक्त

वक्त काटे नहीं कटता है अभी
जैसे बंद घरी की सुईयों में फंसा है कही
सुबह से शाम और शाम से रात के इंतज़ार में
आँखे बोझल बोझल सी लगने लगती है
साँसे चलती तो हैं , अपनी ही रफ्तार से
ना जाने क्यूँ घुंटन सा लगने लगता है अब
जिंदगी की उलझनों को सुलझाने की कोसीस में
खुद से ही उलझ के रुक सा गया हूँ
किसी उजरे हुए कब्रीस्तान में
की जहाँ ना कोई सुनने वाला है मुझे
और ना किसी को सुना सकता हूँ अपने मन की आवाज
माँ तू पास होती तो थोडा शुकून जरुर मीलता
शायद आँखों को थोड़ी नींद भी नसीब हो गयी होती
जीधर भी देखता हूँ , कोई अपना नहीं दीखता मुझको
सारे चेहरे , जो कल तक जाने पहचाने से लगते थे
आज ना जाने क्यूँ हर चेहरे में कुछ तलाश कर रही है मेरी आँखे
वक़्त बिलकुल कटे नहीं कटता है अभी
जैसे बंद घरी की सुइयों में फंसा है कही........