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एक चौराहे की कहानी

उस चेहरे को देख कुछ यूँ लगा
कोई लम्हा याद आया हो जैसे
हाथों में कुछ खिलौने , बदन पे अध् फटे से कपडे
चेहरा जैसे धुप को ललकार रही थी
और आँखे गाड़ी के भीतर बैठे मेम साहब को देख रहे थे
होठ सूखे हुए पर दिल में एक उम्मीद
कोई खिलौना अगर बीक जाता तो पेट की आग को बुझा लेती

बड़ी करुणा भरी थी उसकी आँखे
पर आँखों से क्या होता है
उसके ऊपर माथे की लकीरों को कौन बदल पाया है
उसके हर नजर में एक प्यास थी
और उस चौराहे के लोगों की नजरों में भी कोई प्यास था

समय के साथ बढ़ता बदन , और छोटे होते हुए कपडे
चाह के भी खुद को नहीं छुपा पा  रही थी वो
और हमारे समाज के ताज कहलाने वाले अपनी किस्मत पे इठला रहे थे
सबकी नजरों के घाव को झेल रही थी वो
और दिल जैसे सोच रहा था , की किसको दोश दे
उस खुदा को जिसने ऐसा किस्मत लिखा
या उस कलम को जिससे खुदा ने उसका किस्मत लिखा था कभी

बरी  मुश्कील  से नजरो को छुपा रही थी वो
बरी मुश्कील  से दामन बचा रही थी वो
नहीं चाहती थी की खड़ी रहे उस मोड़ पे मगर
मजबूरीयों का सीतम उठा रही थी वो

चाह के भी तब दे न पाया था एक सिक्का मैंने
पेट थे मेरे भरे , और उसको रखा तब भूखा मैंने
दुनिया को शायद पहली बार मैंने समझा था उस दिन
पैसे की कीमत को पहली बार था पहचाना मैंने

गाड़ियों के भीर में वो आज भी कही खड़ी होगी
लोगों की नजरे उसपे आज भी कही गडी होंगी
आज भी कही धुप में वो , पसीने सुख रही होगी
आज भी किसी मोड़ पे वो अपना दामन बचा रही होगी

आज भी उसको देख के कोई दिल रोया होगा
आज भी उसको देख के कोई रात भर ना सोया होगा .......

जिंदगी और मैकदा

क्यूँ तरपता है कोई किसी के लिए
क्यूँ मचलता है कोई किसी के लिए
जिंदगी देती है धोखा बेखुदी के लिए
मैकदा करता है स्वागत जिंदगी के लिए
               मैकदे में अब हम भी जाने लगे हैं 
               अपने हाथों में जाम अब सजाने लगे हैं 
               शाकी की नजर भी अब देखने लगी हैं हमें  
               जाम होंठो से अब हम लगाने लगे है 
कोई जाता है मैकदे दिल जलाने के लिए 
कोई जाता है मैकदे जले दिल को बुझाने के लिए 
शाकी ने कहा पिने वाले सुनो 
क्या आते हो तुम दिल लगाने के लिए  
               सुना है यहाँ ना कोई तन्हाई है 
               होती यहाँ ना किसी की रुसवाई है 
               लोग जीते है यहाँ पर जिंदगी के लिए 
               लोग पीते हैं यहाँ पर ख़ुशी के लिए 
निगाहों में देखोगी तुम शाकी अगर
नजर आएगी इसमें कहानी मेरी
क्यूँ आया हूँ मैं मैकदे में यहाँ
जान जावोगी सारी कहानी अभी
               इतनी पिला दे नजर से की नजर ढल जाये मेरी
               इतनी पिला दे की होश न आये कभी
               इतनी पिला दे की लोग शराबी कहने लगे
               इतनी पिला दे की पैमाने छोटे लगने लगे
एक आएगा वक़्त सब बदल जायेगा
जाम होंठो पर आकर तब ढल जायेगा
तेरी नजर भी तब धोखा देंगी मुझे
मेरे चेहरे का रंगत बदल जायेगा
               कोई कहेगा की ये दीवाना चला
               कोई कहेगा की ये पिने वाला चला  
               सारी दुनिया करेगी तब शिकायत मेरी
               तेरे होंठों पे भी नाम मेरा आएगा
अपने पलकों पे आँशु ना लाना कभी
ये कहानी किसी को ना सुनाना कभी
सुन के कहानी ये मैकदा रोने लगेगा
दुनिया को फरेबी कहेंगे सभी
               दुनिया से पाकर धोखा थके मुसाफीर कहा जायेंगे
               मैकदा है जन्नत सब लौट यहीं आयेंगे
               मैकदा है जन्नत सब लौट यहीं आयेंगे
               मैकदा है जन्नत सब लौट यहीं आयेंगे.......

Collegae Ka Jamana



Bahut yaad aata hai wo college ka jamana
Wo groups ke chote fights, wo ek dusre ka samjhana
Wo street lyt ki roshni me,raat bhar yun hi bhatakte jana
Wo ek dusre k gam ko bhulana
Bahut yaad aaata hai wo clg ka jamana
Subah k 4baje dosto k sath wo stn pe chai pine jana
Aur chai k paise ka chanda jugadna
Wo doston ka tfn khana
Wo phnx room me baith k tym gujarna
Kisi ek k liye pure grp ka sath me chai pine jana
Kisi ek ki baton ka yun majak urana
Wo xam k tym aur raat k 12 baje mob ka recharge karwana
Wo orkut,gtalk aur fb k chats,wo bin matlab k colg jana
Wo bahut si batain aur mob ka bal khatm ho jana
Wo chat karne ka tym aur net ka DC ho jana
Wo xams k xtra classes doston se lena
Wo ek raat ki padhai, aur xam dene k baad ka khana
Kisi ek ka tabiyat kharab hone pe roommates ka khyal Rakhna
Ghar walon k aane se pahle pure ghar ka saaf karna
Group k ladki logo k discussion se dimaag ka garam hona
Wo birthday ka surprise plan karna
Aur fir kisi ek ki galti se pure plan ka fusssss ho jana
Bahut yaad aata hai wo college ka jamana
Aaj bhi us college me aisa sab hota hoga
Ham jaisa group kahi aaj bhi ye sab karta hoga…..


परीचय

मेरे घर के अन्दर जो रहता है आईने में
उसने मेरा परीचय पूछा
हो कौन तुम , कहा को जाओगे
कहाँ तुम्हारी मंजिल है ?
क्या कभी लौट के फिर तुम आवोगे ?
सुबह का बुझता दीया बोलू उसे
या बोलू मुठी से फिसलता रेत
है बहुत ही मुशकिल देना उसे अपना परीचय
जो मेरे घर के अन्दर आईने में , हँसता हुआ मुझ जैसा कोई रहता है
नहीं देखा है मैंने उसका चेहरा कभी
गम से लदे , आंसू से छुपे हुए
न जाने कैसे खुश रहता है वो
सोचता हूँ पूछ लू पहले उसका परीचय
जो मेरे घर के अन्दर आईने में बैठा , मुझपे तानें मारता रहता है
क्या हैं मेरी मंजिल , मुझे खुद नहीं पता है शायद
सागर बन ने की तमन्ना तो थी
कही नदी बनकर सागर में न सीमट जाना परे
शायद उसे पता हो मंजिल मेरी
जो मेरे घर के अन्दर आईने में बैठा है , जिसकी कोई भी मंजिल नहीं
मंजिल तो पता चल गयी
रास्तों को ढूँढना बाकि है
शायद हो मुस्किल ये सफ़र क्योंकी नहीं है वो साथ मेरे
जो मेरे घर के अन्दर आईने में हँसता हुआ मुझ जैसा रहता है
तो क्या हुआ की मिले रोरे , पत्थर और मुश्कीलाते रास्तों में
लो मंजिल को मैंने पा लिया है अब
जल्दी जल्दी लौटना है घर को
कर रहा होगा वो मेरा इंतज़ार
जो मेरे घर के अन्दर आईने में मुझ जैसा कोई रहता है
लम्हों में और बरसो में तो होता है यूँ फर्क बहुत
बरसो की दूरी कभी लम्हों सी हो जाती है
लम्हों की बात भी जैसे बरसो सी हो जाती है
लम्हों की बात लग रही है, जब मिलूँगा मैं उस से
जो मेरे घर के अन्दर आईने में मुझ जैसा कोई रहता था
कोई और दिखा घर के आईने में मुझे
जहा मुझ जैसा कोई पर हँसता हुआ रहता था
मैंने पुछा उस से

हो कौन तुम , कहा को जाओगे
कहाँ तुम्हारी मंजिल है ?
क्या कभी लौट के फिर तुम आवोगे ?
वो उदास सा चेहरा जिसे मैंन नहीं जानता बोल यूँ ही

सुबह का बुझता दीया समझो  मुझे
या समझो  मुठी से फिसलता रेत
है बहुत ही मुशकिल देना मुझे  मेरा  परीचय।।।।।।।