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ज़िंदगी

ज़िंदगी बहुत याद आ रही है तुम्हारी , और ये कम्बक्त आँशु न जाने क्यों रुक नहीं रहे , ऐसे तो ये कभी निकलते नहीं , पर आज न जाने क्यों मुंबई की बारिश जैसे हो गए है। मालुम है मुझे मुझे रोता देख तुम बहुत रोती और उदाश भी हो जाती पर क्या करू ये भी मेरी तरह बेवफा है आखिर आँशु भी तो मेरे ही है इनसे क्या शिकायत करू।  तुम शायद बहुत अकेली और उदाश हो अभी और शायद इसलिए ये मेरी आँखे गीली कर रहे है। तुम्हे याद है मैंने एक बार कहा था तुम उस ब्लू वाली सूट में बहुत अच्छी लगती हो, आज भी मेरे मोबाइल के कांटेक्ट में तुम्हारा वही वाला फोटो सेव है। उस फोटो में तुम्हारा स्माइल भी काफी अच्छा है, पता नहीं भगवान मेरी सुनेगा या नहीं पर अगर सुन रहा है तो वो हसी हमेसा तुम्हारे चेहरे पे रहे। पता है कभी कभी लगता है तुम यही हो और मुझे देख रही हो, मुझसे बात कर रही हो और ढेर सारा झगड़ा भी कर रही हो और फिर अंत में हम दोनों रोते है और एक दूसरे को मनाते है। ऑफिस से घर आता हूँ तो लगता है की तुम इंतज़ार कर रही हो की मैं फ़ोन कर के बताऊंगा की मैं ठीक से घर पहुंच गया हूँ, और तुम घर पहुंची की नहीं ये जानने के लिए मन बहुत बेचैन हो जाता है, पता है तुमको कभी कभी बहुत बेचैनी लगता है बहुत परेशान हो जाता हूँ , और तुमको तो पता ही है ऐसे में मैं सिर्फ तुमसे बात करता था।  अब कोई नहीं रहता बात करने को ऐसे ही खुद को समझाना परता है। तुमको पता है मैंने गजल सुनना बंद कर दिया है, आज कल नहीं सुनता, पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लगता। आज कल ऐसे ही Youtube पे कुछ कुछ देखता रहता हूँ कुछ खास पसंद का वीडियो नहीं है बस ऐसे ही कुछ भी देख लेता हु। देखो ना फिर से तबियत ठीक नहीं लग रहा है , सोच रहा हु की थोड़ी देर सो लू नींद तो नहीं आएगी पर कोशीश करता हु।  तुम ठीक हो ना ? पता है मुझे अगर मैं ये पूछता अभी तुमसे तो तुम यही बोलती की "ज़िंदा हु ", ऐसा मत बोला करो प्लीज, बहुत दर्द होता है..... ख्याल रखो अपना।

तुमने ये गुलज़ार की नज़्म पढ़ी है क्या ?
Aaj phir chaand ki peshani se uthta hai dhuan
Aaj phir mehki hui raat mein jalna hoga
Aaj phir seene mein suljhee hui vazni sansein
Phat ke bas toot hi jayengi, bikhar jayengi
Aaj phir jaag ke guzregi tere khwaab mein raat
Aaj phir chaand ki peshani se uthta hai dhuan
Aaj phir mehki hui raat mein jalna hoga 

A unique fondness.......

आज बहुत दिनों बाद हिंदी लिखने बैठा था पता चला की मैं हिंदी लिखना भूल गया हूँ , ठीक वैसे ही जैसे जीना भूल गया हूँ। सोच रहा हूँ की कोई काले कागज वाला नोटबुक खरीदू और कब्रिस्तान की सफ़ेद हड्डी से लिखुँ उसपे कवितायेँ जो अक्सर मैं लिखता रहता हूँ अपने ख्वाबों में, जब नींद से चल रही होती ही लड़ाइयां काली अँधेरी मगर शोर करती हुए रातों से।  लिखुँ उसपे वो सारी नज़्में जो अक्सर जेहन में आती है मेरी, जब जब सिगरेट के धुएं में तुम्हारी शूरत नजर आती है।  उस काले कागज के ऊपर मैं लिखना चाहता हूँ इबादतें शैतान के लिए और लिखना चाहता हूँ ढेर सारी बददुवाये ऊपर वाले के लिए जिसने ये सारी दुनीया बनाई है। मैं उस काले कागज के ऊपर अपनी नाकाम्यबिनाँ लिखना चाहता हूँ, तुम्हारी हँसी लिखना चाहता हूँ , अपने आंशू लिखना चाहता हूँ, और सबसे अंत में चाहता हूँ की लिखू......................ख्याल रखना..............Love you too