आज फिर डूबेगी कलम मेरे काले खून में और निकलेंगे कुछ अल्फ़ाज़ जो धीरे धीरे मारते जा रहे है मुझे, ठीक वैसे ही जैसे काटता है लकरहारा किसी पेड़ को. काले खून से लिखी जाएँगी मेरे नाकाम वफ़ा की चंद बातें…जिसने रुलाया है तुमको दिन रात…जिसने बना डाला है तुमको मज़ाक का सामान सबके लिए. सुना है हर कर्मो की सजा देता है खुदा , खुद का दीदार कराने से पहले, मेरी क्या सजा होगी ये तो नहीं जानता पर सजा तो मिलनी ही है.
खवाहिश थी की हसते हसते विदा करूँगा सबको, पर अब ये मुमकीन नहीं है.......... तेरी सजा काटना भी बाकी रह गया मेरी जान............. बस एक और आख़िरी एहशान कर देना अपने आशीक पे , जब सब रो रहे हो मेरे सीने पे सर रख के, एक आखिरी बार आना मिलने और लगा लेना गले से अपने , की रूह को थोड़ा शुकून मिल जाये शायद और मिल जाये हिम्मत खुदा के कहर से लरने के लिए .
खवाहिश थी की हसते हसते विदा करूँगा सबको, पर अब ये मुमकीन नहीं है.......... तेरी सजा काटना भी बाकी रह गया मेरी जान............. बस एक और आख़िरी एहशान कर देना अपने आशीक पे , जब सब रो रहे हो मेरे सीने पे सर रख के, एक आखिरी बार आना मिलने और लगा लेना गले से अपने , की रूह को थोड़ा शुकून मिल जाये शायद और मिल जाये हिम्मत खुदा के कहर से लरने के लिए .