Pages

एक शून्य में खोया हुआ

एक शून्य में खोया हुआ अनजाना सा मैं
जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हूँ
की कही मील जाये शायद वो 
की जिसने सिखाया था प्यार करना मुझे
की जो मेरे ही रूह में बस गयी थी कभी
की जिसको देखने की लालच में
आँखों ने सोना छोर दिया था
एक शून्य में खोया हुआ अनजाना सा मैं
जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हूँ
की कही मील जाये शायद वो
की जीसके एक आंशु के टपकने पे
पुरे दुनिया को जलाने  का दिल करता था
की जिसके एक मुस्कुराने पे
जिस्म की थकान दूर हो जाया करती थी
की जिसके साथ नहीं होने पर भी
उसके यादों की महक बिखरती रहती थी
एक शून्य में खोया हुआ अनजाना सा मैं
जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हूँ
की कही मील जाये शायद वो
की जो मेरे बुलाने पर भी
अब मेरे पास नहीं आती
की जो अब समझ नहीं पाती
मेरे जुबान की बातें
की जिसने मेरी ख़ामोशी सुन के
मुझसे प्यार किया था कभी
एक शून्य में खोया हुआ अनजाना सा मैं
जैसे कुछ ढूंढ़ रहा हूँ
की कही मील जाये शायद वो



No comments:

Post a Comment