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आखीरी सिगरेट !!!!

रात के अँधेरे में जब सो जाती है सारी दुनीया , जब फ़ैल जाता है सन्नाटा चारो तरफ और सुनाई देने लगती है घरी की टिक-टिक और झींगुर की आवाजे , ऐसे में सो जाता है कवी घर की किसी दीवार को देखते हुए। सपने में देखता है सूखते हुए समंदर को, की जिसमे से फसाई है मछुवारे ने कुछ मछलिया और जाल को फेंक दिया है सूखे हुए रेत  पे.ज़ो न पूरा सुखा हुवा है न पूरा गीला। तरप रही है मछली पानी के लिए और  सुलगा रहा है अपना सिगरेट वही पास में बैठा हुआ मछुवारा , और जाल में फंसी मछली सोच रही है की वो जाये तो जाये कहा. यूँ तो पास में ही समंदर है, पूरा भरा तो नहीं पर उतना सुखा भी नहीं की मछली जी न सके उसमे।।।।पर कुछ यूँ फंसाया है मछुवारे ने की जाल में फंसी मछली निकल नहीं सकती, और रेत भी उतनी गीली नहीं की वो सांस ले सके , कुछ यूँ तरप है की  वो की दुवा मांग रही है अपने मौत की, खुदा तू तो बहुत रहम दिल है .....क्यों  तरपा रहा है उसे जबकि अब ये निश्चित है की उसे जाना है फिर इस तरप की वजह क्या है.... क्या इतने पाप किये है इस मछली ने.…मत तरपा उसे की अब वो सांस नहीं ले पा रही.……दिल बाहर निकल रहा रहा है.… सुना है की हर ज़र्रे ज़र्रे में तू रहता है फिर देख के अनदेखा क्यों कर  रहा........... चीख निकलती है मछली की और जाग उठता है कवि.…………सपने का ही असर होगा शायद महशूस करता है खुद को किसी जाल में फंसे हुए.… सजदा करता है उस रहम दिल की और मांगता है दुवा अपनी मौत का.……… अँधेरी रात और ऐसे सपने।।।शुकुन  कहा मिलेगा उसे.…अब थक सा गया है कवि नहीं चाहता देखना कोई और सपना............बस कुछ सवाल , कुछ जबाब , कुछ बेबसी ,कुछ मज़बूरी , कुछ नाराजगी लिए रुख्शत होना चाहता है.…और चाहता है जलनी आखिरी सिगरेट , जो जल नहीं रही आसानी से, लाइटर जला नहीं पा रहा शायद या जलना नहीं चाहती वो छोटी से सिगरेट, शायद उसको भी पता है की ये आखिरी मिलन है मेरा!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


याद आता है कवि को कही पढ़ी हुई कुछ पंक्तिया.....................
मोमबती की बुझती लौ से जलाई जा रही है आखिरी सिगरेट..............जिसके कश लेकर मर जाना चाहता है कवि!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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