कल रात चाँद बहूत उदास था शायद
बादलो से कूछ पानी की बुँदे टपक रही थी
खीरकी से जो हवा का झोंका अंदर आया
उसमे कूछ जलने की बू आ रही थी
कीसी का दील जला होगा कही
या कीसी ने कोई सिगरेट जलाई होगी
तुम्हे पता तो है ना की हर पल रहता है इंतज़ार तुम्हारा
तुम्हारे ना होने पर भी, सुनाई देती है तुम्हारी खामोशियाँ
घरी की टीक - टीक की तरह
सिगरेट के धुएं में भी तुम नजर आ जाती हो
जानता हूँ नहीं है पसंद तुमको, मेरा इंतज़ार करना
रहना चाहती हो मुझसे दूर
डर भी लगता होगा , तुम्हे मेरी बातों से
पर फीर भी.… तुमको पता तो है ना....
की हर पल रहता है इंतज़ार तुम्हारा
सोचता हूँ की लीखूं एक आखिरी खत
किसी अनजाने से शख्स को
जो जानता नहीं हो मुझे
और बिखेर के रख दूं , सारे ख्यालात
जो दर्द देते रहते है मुझे
जिनसे जितना दूर जाऊ , उतना ही पास आते रहते है
और उस खत को बहा दू सागर में
किसी बोतल में बंद करके !!!!!!!
No comments:
Post a Comment